प्राइवेट स्कूलों की व्यथा
प्राईवेट स्कूलों की व्यथा :- अभिभावकों ने एक नारा दिया है- NO SCHOOL NO FEES ।। आपने ख्याल किया होगा, जब गाय दूध नहीं दे रही होती, तब भी उसको चारा डाला जाता है ताकि गाय जीवित रहे ,वह आने वाले समय म़े फिर दूध देगी।क्योंकि जो पूज्य होते हैं उनका ध्यान रखा जाता है,अपना स्वार्थ नही देखा जाता,अब सबके सामने जिंदा रहने का सवाल है। स्कूल प्रबंधन का अर्थ सिर्फ स्कूल मालिक नहीं है। हर स्कूल में टीचर, ड्राइवर, चपरासी, अकाउंटेंट, कम्प्यूटर ऑपरेटर मिलाकर 20 से 100 का स्टाफ हो जाता है। राज्य में कई हजार निजी स्कूल हैं, जिनमें करीब 400000 लोगों को रोजगार मिला हुआ है। सभी परिवारों को 2 माह से वेतन भी दिया जा रहा है क्योंकि वह स्कूलों की ज़िम्मेदारी है,अब यदि यह उनकी ज़िम्मेदारी है तो क्या आपका दायित्व यह नही बनता की आप जो लोग आपके बच्चो को शिक्षा देते हैं उनका ध्यान आप भी रखें, यदि फीस जमा नही होगी तो स्कूल खर्चे कहां से निकलेगा, हर स्कूल औसतन 2 से 10 लाख रुपये वेतन पर खर्च करता है। ज्यादातर स्कूलों में बसें लोन पर हैं। लेकिन किश्तों में कोई माफी नहीं है। बिजली बिल माफ नहीं हैं। और क